Virat Kohli: भारतीय क्रिकेट में फिटनेस को लेकर हमेशा से सख्ती दिखाई जाती रही है, लेकिन इस बार चर्चा का केंद्र बन गए हैं टीम इंडिया के दिग्गज बल्लेबाज़ विराट कोहली। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोहली को बीसीसीआई ने विशेष अनुमति देकर लंदन में फिटनेस टेस्ट देने की इजाज़त दी, जबकि बाकी खिलाड़ियों ने यह टेस्ट बैंगलुरु स्थित बीसीसीआई सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में पूरा किया। इस फैसले ने क्रिकेट जगत में हलचल मचा दी है और कई लोग पूछ रहे हैं क्या कोहली को दी गई यह छूट सही है?
फिटनेस टेस्ट में क्यों है इतनी सख्ती

आने वाले महीनों में भारत का इंटरनेशनल शेड्यूल बेहद व्यस्त रहने वाला है। एशिया कप के बाद ऑस्ट्रेलिया दौरे और फिर अन्य बड़े टूर्नामेंट होने हैं। ऐसे में बीसीसीआई खिलाड़ियों की फिटनेस को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहता। यही वजह है कि अगस्त के आखिरी हफ़्ते में रोहित शर्मा, जसप्रीत बुमराह, शुभमन गिल, मोहम्मद सिराज समेत कई बड़े खिलाड़ियों का फिटनेस टेस्ट बैंगलुरु में हुआ।
लेकिन इसी दौरान विराट कोहली, जो उस समय इंग्लैंड में अपने परिवार के साथ थे, उन्हें लंदन में ही फिटनेस टेस्ट देने की अनुमति मिली। यह फैसला बीसीसीआई के प्रोटोकॉल से अलग था, क्योंकि आमतौर पर सभी खिलाड़ियों के लिए एक जैसी प्रक्रिया अपनाई जाती है।
Virat Kohli को मिली छूट पर उठे सवाल
कोहली ने टी20 और टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया है और अब सिर्फ वनडे फॉर्मेट में उपलब्ध हैं। अक्टूबर-नवंबर में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ होने वाली सीरीज़ में उनके खेलने की पूरी संभावना है। ऐसे में उनका फिटनेस टेस्ट ज़रूरी था। बीसीसीआई के फिजियो और ट्रेनिंग स्टाफ ने लंदन में हुए उनके फिटनेस टेस्ट की रिपोर्ट बोर्ड को सौंप दी।
हालाँकि, यह बात सामने आने के बाद चर्चा छिड़ गई कि अगर कोहली को विदेश में टेस्ट देने की अनुमति मिल सकती है, तो क्या भविष्य में अन्य खिलाड़ियों को भी ऐसी छूट दी जाएगी? बीसीसीआई का कहना है कि कोहली ने पहले से अनुमति ली थी, लेकिन इस घटना ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
बाकी खिलाड़ियों के लिए अलग नियम क्यों
क्रिकेट प्रेमियों और खेल विशेषज्ञों का मानना है कि फिटनेस नियम सबके लिए बराबर होने चाहिए। चाहे खिलाड़ी का नाम विराट कोहली हो या फिर कोई उभरता हुआ क्रिकेटर फिटनेस चेक एक ही जगह और एक ही तरीके से होना चाहिए। अगर किसी खिलाड़ी को विदेश में रहने या निजी कारणों से अलग छूट दी जाती है, तो यह बाकी खिलाड़ियों के लिए सवाल खड़े करता है।
बीसीसीआई ने पिछले कुछ वर्षों में चोट और वर्कलोड मैनेजमेंट को लेकर बहुत सख्ती दिखाई है। बड़े टूर्नामेंट से पहले खिलाड़ियों को अनिवार्य फिटनेस मंजूरी लेना अब नियम बन चुका है, ताकि अंतिम समय में किसी तरह की परेशानी न हो।
क्या बीसीसीआई बदलेगा अपना नियम
कोहली का लंदन में फिटनेस टेस्ट देना शायद एक अपवाद के तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन यह मामला बड़ा सवाल खड़ा करता है। क्या बीसीसीआई भविष्य में इस तरह की लचीलापन (geographic flexibility) को औपचारिक रूप से मान्यता देगा? या फिर यह सिर्फ चुनिंदा खिलाड़ियों के लिए ही रहेगा?

सितंबर में होने वाले दूसरे चरण के फिटनेस टेस्ट में केएल राहुल, रवींद्र जडेजा, ऋषभ पंत जैसे खिलाड़ी शामिल होंगे, जो अभी रिहैब में हैं। ऐसे में बोर्ड के सामने यह चुनौती और भी बढ़ जाती है कि वह फिटनेस प्रोटोकॉल में एक समानता बनाए रखे।
विराट कोहली का लंदन में फिटनेस टेस्ट देना भले ही एक साधारण प्रक्रिया लगे, लेकिन इसने भारतीय क्रिकेट में नए सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या खिलाड़ियों को ऐसी छूट मिलनी चाहिए या फिटनेस टेस्ट हमेशा देश में ही होना चाहिए? आने वाले समय में बीसीसीआई को इन सवालों के जवाब देने होंगे। फिलहाल, क्रिकेट प्रेमी यही उम्मीद कर रहे हैं कि हर खिलाड़ी फिट और मजबूत होकर मैदान में उतरे और टीम इंडिया के लिए शानदार प्रदर्शन करे।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सूचना के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी रिपोर्ट्स और मीडिया स्रोतों पर आधारित है। किसी भी तरह की आधिकारिक पुष्टि या निर्णय का प्रतिनिधित्व नहीं करता।
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